Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
... 488
पंचमांगविवाह पण्णनि ( भगवती ) सूत्र #gh
बेकाएसेढीए उववजमाणे दुसइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, दुहओ बंकाए सेढीए उववजमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेजा; से तेण?णं एवं पजववसुवि वादर तेउका इयसु सेसं जहा रयणप्पभाए ॥ जेवि वायर तेउक्काइया अपज्जतगाय पत्तगाय समयखेत्ते समोहया दोच्चाए पुढवीए पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते पुढविकाइएसु चउविहेस आउकाइएसु चउव्विहंसु तेउक्काइएसु दुविहेस वाउकाइएमु चउव्वेिमु वणस्सइकाइएम
चउबिहेसु उववज्जइ, तेवि एवं चेव दुसमएणं वा तिसमइएणवा विग्गहेणं उववातेयव्बा किस लिये ऐसा कहा है यावत् दो अथवा तीन समय लगता है ? अहो गौतमः मैंने सात श्रेणियों प्ररूपी हैं। ऋजुआयता यावत् अर्धचक्रवाला जिन में एक बाजुवक श्रेणी में उत्पन्न होते हुवे दो समय के विग्रह से स उत्पन्न होवे, दो बाजु वक्र श्रेणी से उत्पन्न होते तीन समय में उत्पन्न होवे. इसलिये ऐसा कहा गया है.. शेष सब रत्नप्रभा जैसे कहना. और नो पर्याप्त व अपर्याप्त बादर तेउकाया मनुष्य क्षेत्र में मारणांतिक समुद्धात करके दूसरी शर्कर प्रभा पृथ्वी में पश्चिम के चरिमांत में चार पृथ्वीकाया में चार अप्काया में, चार तेउकाया में, चार वायुकाया में, और चार वनस्पतिकाया में उत्पन्न होते हैं वे दो समय अथवा.* जीन समय के विग्रह से उत्पन्न होते हैं: अपर्याप्त व पर्याप्त बादर तेउकाया जैसे. रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ।
भावार्थ
चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा48
488