Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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विवाह पण्णा ( भगवती ) सूत्र
ओगाहणा. जहेणेणं अंगुसस्स असंखेजइ भागं उक्कोणवि अंगुलस्स असंखेजइ भागं, आउयकम्मस्स जो बंधगा अबंधगा, आउयस्स णो उदीगा अणुदीरगा, जो उस्सासगा णो णिस्सासगा, णो उस्सासणिस्मासगा॥ सत्तविह बंधगावा, णो अट्टविह वंधगावा ॥ १ ॥ तेणं भंते ! पढम समय कडजुम्म २ एगिदियात्ति कालओ कवचिरं होइ ? गोयमा ! एक समयं. एवं ठितीएवि, समुग्धाया आदिल्ला दोण्णि, समोहया ण पुच्छिजति उबट्टणा णपुच्छिजइ, सेसं तहेव सव्वं णिरवसेसं,सोलसमुवि
गमएसु जाव अणंता खुत्तो ॥ सेवं भंते २. त्ति ॥ पेंतीसमस, वितिओ॥ ३५॥२॥ * अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट भी अंगुल का असंख्यातवा भाग, आयुष्यकर्म के बंधक नहीं हैं परंतु अबंधक है, आयुष्यकर्म की उदीरणा करनेवाले नहीं हैं परंतु अनुहीरणाधाले हैं, उश्वासबोले, निवासवाले व उश्वासनिश्वासवाले नहीं हैं, सात कर्म के बंधक हैं परंतु आठ कर्म के बंधक नहीं हैं ॥ १ ॥ अहो, भगवन्! प्रथम समय कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय कितने काल तक रहते हैं! अहो गौतम ! एक समय, एसे ही स्थिति का भी कहना. समुद्धात स्थिति पहिले की दो,समोइया व उद्वर्तना की पृच्छा नहीं कहना. शेष सोलह गमा में अनंत वक्त पर्यन्त वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह पंतीसवां शतक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण वा ॥ ३५ ॥ २॥
388 पतीसवा शतक का पहिला उद्देशा
भाशार्थ!
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