Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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॥ चत्वारिंशतम शतकम् ॥ कडजुम्म २ सण्णि पंचिंदियाणं भंते ! कओ उबवजंति ? उववाओ चउसुवि गईस संखेजवासाउय असंजवासाउय,पजत्ता अपजत्तासुय णकओवि पडिसेहो जाव अणुरर विमाणत्ति, परिमाणं अवहारो ओगाहणा जहा असंणि पंचिंदियाणं, वेदणिज्जवजाणं सत्तण्हं कम्मप्पगडीणं बंधगा वा अबंधगावा, वेदणिजस्स बधगा णो अबंधगा, मोहणिजस्स वेदगा वा अवेदगावा, सेसाणं सतण्हवि वेदगा णो अवेदगा; साया
वेदगावा असायावेदगावा, मोहणिज्जस्स उदईवा अणुदईवा, सेसाणं सत्तण्हवि उदयी भावार्थ
अहो भगवन्! कृपयुग्म कृतयुग्म संत्री पंचेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ?अहो गौतम! उपपात चारोंगतिमें कहना. संख्यात वर्षवाले, असंख्यात वर्ष वाले पर्याप्त अपर्याप्त इन में कहीं भी प्रतिषेध कहना नहीं यावत् अनुत्तर विमान पर्यन्त उत्पन्न होवे. परिमाण, अपहार व अवगाहना असंही पंचेन्द्रिय जैमे कहना. वेदनीय छोडकर सातकर्म के बंधक अथवा अबंधक भी हावे. वेदनीय के बंधक हैं परंतु अबंधक नहीं हैं क्यों कि संजी
चेन्द्रियपना बारह वे गुणस्थान पर्यन्त रहता है, और वेदनीय कर्मका बंध तेरहवे गगस्थान पर्यंत होता है." 13सात कोका बंधदशवे गुणस्थान पर्यन्त रहना है.माहनीय के घेईक और अवेदक दोनों हैं, शेष मात कोंक वेदक
बेदक नहीं, साता वेदनीयवाले भी हैं अथवा असाता वंदनीयवाले भी हैं. मोदनीय कर्म के उदयवाले
पंचांग विवाह एण्णत्ति (भगवती) सूत्र 48
488+ चालीसवा शतक का पहिला उदशा 420