Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सण्णोवउत्ता णो सण्णवउत्ता ? गोयमा ! आहार सण्णोवउत्ता जाव णो सण्णोवउत्ता, सवपुण्छा भाणियन्वा ।। कोहकमायी जाव लोभकायी वा अकसायीवि ॥ इत्थीवेदगावा पुरिसवेदगावा, णपुंगवेदगावा अवेदगावा ॥ इत्थीवेद बंधगावा, पुरिसवेद बंधगावा, णपुंसगवेद बंधगावा, अबंधगाव ॥ सण्णी णो अक्षण्णी ॥ मइंदिया णो अणिदिया । संचिटणा जहण्णेणं एक समथं उक्कोसेणं सागरोवमसय पहत्तं सातिरेगं॥ आहारो तहेव जाव णियमं छद्दिसिं ॥ठिई जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसेणं तेत्ती सागरोचमाइं॥ छममुग्घाया
आदिल्लगा,मरणांतिय समुग्घायणं समोहयावि मरंति असमोहावि मरंति ॥ उबटणा जहे। भावार्थच नो संज्ञोपयुक्त है? अहो गौतम! आहार संझोपयुक्त यावत् गे संज्ञोपयुक्त हैं यों सब पृच्छा कहना. क्रोध
कषायी यावत् लोभ कषायी हैं व अषायीभी.हैं स्त्री वेदक,पुरुष वेदक, नपुंसक वेदक,हैं अवेदकभी हैं. स्त्री वेदक के बंधक,पुरुष वेद बंधक,नपुंसक वेद बंधकभी हैं व अंधकभी हैं.संज्ञी हैं परंतु असंही नहीं, सइन्द्रिय
हैं परंतु अनेन्द्रिय नही.संचिठणा जघन्य एक समय उत्कृष्ट साधिक प्रत्येक सागरोपम. आहार छदिशिका लेवे. 1 स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट तेनीस मागरोपम.पहिली छ समुद्धातपावे,मारणांतिक समुद्घात से समोहया
और असमोया ऐसे दोनों मरण मरे, उद्वर्तना उपपात जैसे कहना. इन में किसी स्थान प्रतिषेध अनुत्तर,
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र kat
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चालीसवा शतकका पहिला उद्देशा 448
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