Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पढमुद्देसए, सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ ३६ ॥ २ ॥ * ॥ एवं एएणवि जहा एगिदिय महाज़म्मेस एक्कारस उद्दसगा तहेव भाणियव्या, णवरं चउत्थ छट्रटम दसमेसु सम्मत्त णाणाणि ण भगंति, जहेव एगिदिएसु; पढमो तइय पवमोय एकगमा, सेसा अट्ठ एक्कगमा, ॥ पढमं वेइंदिय महाजुम्म सयं सम्मत्तं ॥ ३६ ॥ १ ॥ कण्ह लेस्स कडजुम्म २ वेइंदियाणं भंते ! कओ उववजंति, एवंचेव कण्हलेस्ससुवि एकारस उद्देसग संजुत्तं सयं, णवरं लेस्सा संचिठणा ठिई जहा एगिदिय कण्हलरसाणं॥
वितियं बेइंदिय सयं ॥ ३६ ॥ २ ॥ + ॥ एवं णीललेस्सेहिवि सयं जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥ ३६॥२॥ * ॥यों इसक्रम से जैसे एके महायुग्म शतको अग्यारह उद्देशे कहे वैने यहांपर कहना. परंतु चौथा, छठा दशवा उद्देशमें सम्यक्त्व कमान नहीं होते हैं. पहिला, तीसरा पपांचवा उद्देशे का एकगमा और बाकी आठ उद्दश का एकगमा कहना. यह पहिला वेइन्द्रिय महायुग्म नामक शतक समाप्त हुवा॥३६॥३॥ ४ ॥ अहो भगवन्! कृष्ण लेश्यावाले कृतयुग्म २ बेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? ऐनही कृष्ण लेश्या का अग्यारह उद्देशा सहित शतक कहना परंतु संचिठगा व स्थिति ए केन्द्रिय कृष्ण लेश्या जैसे कहना. यह दुसरा बेइन्द्रिय शतक संपूर्ण हुना ॥ ३० ॥२॥ * ॥ऐसे दी नील लश्या की साथ तीसरा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ३६॥३॥
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी चालाप्रसादमी,
भावाथ