Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
॥ षडत्रिंशतम शतकम् ॥ कडजुम्म २ बेइंदियाणं भंते ! कओ उववजति ? उववाओ जहा वकंतीए, परिमाणं सोलस वा संख जावा असंखेजावा उववजंति ॥ अवहारो जहा उप्पलुद्देसए, ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलरस असंखेजइ भाग, उक्कोसेणं वारस जोयणाई, एवं जहा एर्गेिदिय महा जुम्माण पढमुद्देसए, तहेव, णवरं तिण्णि लेस्साओ, देवा ण उववजंति, सम्महिदीवा मिच्छद्दिट्टी वा; णो सम्मामिच्छादिट्रीवा ॥ जाणीवा अण्णाणीवा ॥ जो मणजोगी, वइजोगीवा कायजोगीवा ॥ १ ॥ तेणं भंते ! कडजुम्म २ वेइंदिया पेंतीसवे शतक में एफेन्द्रिय की वक्तव्यता कही. छत्तीसवे शतक में बेइन्द्रिय की वक्तव्यता करते हैं. अहो भगवन्! कृतयुग्म कृतयुग्य वेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं? उपपात व्युत्क्रांति पन्नवना] जैसे कहना. परिमाण सोलह संख्यात व असंख्यात उत्पन्न होते हैं. अपहार उत्पल उद्दशा जैसे कहना. अवगाहना जघन्य अंगलका असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट बारह जोजन.यों जैसे एकेन्द्रिय महायुग्म का पहिला उद्देशा कहा. वैसे ही कहना परंतु लेश्या तीन कहना. इस में देव नहीं उत्पन्न होते हैं. समदृष्टि व मिथ्यादृष्टि हैं परंतु सममियादृष्टि नहीं हैं.ज्ञानी अथवा अज्ञानी दोनों हैं,पनयोगो नहीं हैं परंतु वचन योगी व काया योगी दोनों हैं ॥१॥
wapmommmmmmmmmmms कामकाजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ