Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + 48 अनुवादक-पालब्रह्मचारी
जाव सम्बपत्त' भवसिद्धिय कडज्जुम्म २ एगिदियत्ताए उबवण्णपुवा ? गोयमा ! यो र इण? समटे सेसं तहेव ॥ सेवं भंते! भंतेत्ति ॥ पंचमं एगिदिय सयं महाजुम्म : सम्मत्तं ॥ ३५ ॥ ५॥ ४ ॥ कण्ड लेस्स भवसिद्धिय कडजुम्म २ 1०४८ एगिदियाणं भंते ! कओ उववजंति, ? एवं कण्हलेस्स भवसिद्धिय एमिंदियहिावे सयं - वितियं सयं कण्ह लेस्स सरिसं भाणियत्वं । सेव भंते २ त्ति ॥ छटुं एमिंदिय महा जुम्म सयं ॥३५॥६॥ * ॥ णीललेस्से भवसिद्धिय एगिदियहिंविसयं, सेवं:
भंते रत्तिास तम एगिदिय महाज्जु सयं॥३५॥७॥ * काउलेस्से भवसिद्धिय एगिदिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों औधिक शतक जैसे विशेषता रहित कहना. परंतु अग्यारह उद्देशे में सब माण भूत जीव व मत्व भवसिदिक कुन युग्म २ एफेन्द्रियपने क्या पहिले उत्पन्न हुने ? अहो मौतम : यह अर्थ योग्य नहीं हैं. शेष वैसे ही. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह महाजुम्म एकेन्द्रिय पांचवा. शनक संपूर्णहुना.॥३५॥५॥ ॥ अहो भगवन्! कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक कृतयुग्मर एकेन्द्रिय कहां मे उत्पन्न होते हैं? यो कृष्णलेश्या भवमिद्धिक एकेन्द्रियका भी शतक दूसराशतक कृष्णलेश्या समान कहना अहो एभवन् ! भाप के वचन सत्य हैं यों छटा एकेन्द्रिय महायुग्म शतक संपूर्ण हुवा. ॥ ३५ ॥ ६ ॥
नील लेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय की साथ भी वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन है।
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प्रकाशक-राजाबहादुर लाला-मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ