Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जहा पढमुदेसओ तहेव णिरव सेसं सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ ॥३५॥११॥ . ' + एवं एएणं कमेणं एक्कारस उद्देसगा पहमो ततिओ पंचमओ य सरिसगमया, सेसा अट्ठ सरिसा, णवरं चउत्थ अट्टमे दसमे देवो ण उववत्तति, तेओलेस्सा णत्थि ॥ पढम एगिंदिय महा जम्मा सयं सम्मत्त ॥ ३५॥ १ ॥ * ॥ कण्हलेस्स कडजुम्म २ एगिदियाणं भंते ! कओ उबवजंति ? गोयमा ! उववाओ तहेव; एवं जहा ओहिय उद्देसए, गवरं इमं णाणत्तं ॥ तेणं भंते ? जीवा ! कण्ह
लेस्सा ? हंता कण्ह लेस्सा ॥ तेणं भंते ! कण्ह लेस्सा कडजुम्मा २ एगिंदिया कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे पहिला उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों पेंतीसवा शतक का अग्यारहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३५ ॥ ११ ॥ यों इस क्रम से अग्यारह उद्देशे कहना, उस में पहिला, तीसरा और पांचवा ये सरीखे उद्देशे हैं. शेष आठ उद्देसे सरिखे जानना. परंतु चौथा, आठवा व दशत्र उद्देश में देव नहीं उत्पन्न होते हैं. जिस से तेजो लेश्या नहीं।
पाती है. यह पहिला महायुग्म नामक एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुवा ॥ ३५ ॥ १ ॥x 156 अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्या वाले कृत युग्म २ एकेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ! यों औधिक उद्देशे
में जैस कहा वैसे ही कहना परंतु विशेषता यह है कि अहो भगवन् ! वे जीवों क्या कृष्णा लेश्या वाले
पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 48
480 पतसिवा शतकका दूमरा उद्दशा 482
भावाथ