Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचांग विवाह पणषि (मगवती ) मूत्र +8+
सुअअण्णाणीय ॥ णो मणजोगी णो वइजोगी, कायजोगी ॥ सागारोवउत्तावा अणागारोवउत्तावा ॥ ६ ॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं सरीरा कइवण्णा जहा उप्पलुद्देसए सव्वत्थ पुच्छा ? गोयमा ! उप्पलुद्देसए ऊसासगावा णीसासगावा, णो उस्सासगा णीसासगात्रा ; आहारगावा अणाहारगावा, पो. विश्या अविरया, णो विरया विस्या। भकिरिया जो अकिरिया, ॥ सत्तविह बंधगावा अटुकिह बंधगाश, आहार
सण्णोवउत्तावा जाव परिग्गह सण्णोवउत्तावा ॥ कोह कसाइ जाव लोभकसाइवा ।। नहीं है परंतु अज्ञानी में दो अज्ञान अर्थात पति अज्ञान वश्रुत अज्ञान इन दोनों अज्ञान की नियमा है. मन योगी
पचन योगी नहीं हैं परंतु एक काया योगी है. साकारोपयोग व अनाकागोपयोग यों दोनोंउपयोम वाले E. ॥६॥ अहो भगवन्! उन जीवों के शरीर का कौनसा वर्ण कहा वगैरह उत्पल उद्देशे जैसे सर्वत्र पृच्छया की
पेशा कहना? अहो गौतमः उत्पल उद्देशे जैप्ता उत्तरभी जानना. अर्थात् चे उश्वास वाले अथवा नीश्वास वाले हैं, परंतु उश्वास निश्वास वाले नहीं है,भादरक अनाहारक है,विरति र घिरता विरति नहीं हैं परंतु अविरति हैं. सक्रिय } ! है परंतु अक्रिय नहीं है,सात भया. आठ प्रकारके कर्म बंध करने वाले हैं. आहार संज्ञा वाले यावत परिग्रह । संज्ञा वाले हैं, क्रोध करायी यावत् लोभः कषायी हैं, स्त्री वेदी पुरुष वेदी नहीं है परंतु नपुंसक वेदी है. ली ।
488 पैतीसवा शतक का पहिला उद्देशा-48