Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमा विवाह पण्णचि (भगवती) मूत्र 48+
चउतीसम सयस ततिओ ॥ ३४ ॥ ३ ॥ * एवं सेसावि
अट्र उद्देसगा जाव अचरिमोत्ति, णवर अणंतरा अणंतर सरिसा, परंपरा परंपर सस्सिा , चरिमाया अचरिमाया एवं चेव. एवं एते एकारस उद्देसगा ॥१॥ पढमं एगिदिय सेढिसयं सन्मत्तं ॥ ३४ ॥ १ ॥ कइविहाणं भंई ! कण्ह लेरसा एगिदिया पं०? गोयमा ! पंचविहा कण्ह लेस्सा एमिंदिय ५० भेदे! चउकाओ जहा कण्हलेस्मा एमिंदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति
कण्हलेस अपजत्तग मुहुम पुढवीकाइयाणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा.॥३४॥३॥ ऐसे ही शेष आठ उद्देश अचरिम पर्यंत कहना. परंतु अनंतर अनंतर समान व परंपरा परंपरा समान कहना. यो अग्यारह उद्देशे संपूर्ण हुए. यह प्रथम एकेन्द्रिय श्रेणि नामक प्रति शतक संपूर्ण हुवा, ॥३: ॥2॥ अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रिय कितनेकहे ?अहो गौतम! कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रिय पांच कहे. पृथ्वीकाया यावत् वनस्पतिकाया यों एक २ के चार २. भेद, कृष्ण लेश्यावाले एकेंद्रिय शतक. जैसे.वनस्पतिकाया पर्यन्त कहना. अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया इस
4880 चौतीसवा शतक का दूसरा उद्देशा
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