Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
एएणं अभिलावणं जहेव ओहिओ उद्देसओ जाव लोय चरिमंतेत्ति, सम्वत्थ कण्हलेस्लेसु भवसिद्धि येसु उक्बातेयव्यो ॥३॥ कहिणं भंते ! परंपरोक्यण्णगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिय पज्जत्ता वायर पुवाकाइपाण ठाणा पण्णत्ता ॥ एवं एएणं अभिलावेणं जहेब ओहिओ उद्देसओ जाय तबुदितीयत्ति ॥ एवं एएणं अभिलावेणं कण्हलेस्स भवसिद्धिय एगिदिए तहेव एकारल उद्देसग संजुत्तसयं छ? सयं सम्मत्तं ॥३४॥६॥ णीललेरत भवासांडेय एगिदिएसु सत्तम सयं सम्मतं ॥ ३४ ॥ ७ ॥ x
एवं काउलेस्स भाव सिद्धिय एगिदिएहिषि सयं ॥ अट्ठमं सयं ॥ ३८ ॥ ८ ॥ + जैसे औधिक उद्देशा कहा से ही यावत लोक चरिमांत पर्यंत कहना. सब स्थान कृष्ण लेश्या गले भवसिद्धिक में उत्पात काना. जहो भगान ! परंपरोत्पन्न कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक पर्याप्त वा काया के स्थानक कहां कह हैं ? अहो गौतम ! इस अभिला. से जैसे औधिक उद्देशा. कहा से स्थिति पर्यंत कहना. यो इम अभिलाप से कृष्ण लेश्या भवसिद्धिक एकेन्द्रिय के वैसे ही अग्यारह उद्देशे
वाला छठा शतक पूर्ण हुवा.॥३४॥६॥ ऐस ही नील लेश्या भवसिद्धिक एकेन्द्रिय का सातवा शतक संपूर्ण महुवा ॥ ३४ ॥ ७ ॥ ऐसे ही कापुल लेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय का आठस शतक हुना ॥३४॥८१.
काजकन्सजावहादुर लालामुखद्वसहायजा ज्वालामसारमा.
भावार्थ