Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ '
488+ पंचमाङ्ग विवाट पण्णा ( भगवती सूत्र
पकरोति ? गोयमा ! एगिंदिया चउव्विहा प० तं अत्थेगइया समाउया समोववण्णा, जाव अत्थेगइया विसमाउया विसोत्रवण्णगा ॥ तत्थणं जे ते समाउया समोवण्णगा तणं तुल्लठितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति १, तत्थणं जे ते समाज्या सिमोवण्णा तेणं तुल्लठितया बेमाय बिसेसाहियं कम्मं पर्करेति २, तत्थणं जे ते त्रिसमाज्या समोत्रवण्णगा तेणं वेमायठितीया तुल्लबिसेसाहियं कम्मं पकरेति ३, तत्थणं जे ते त्रिसमाज्या विसमोववण्णगा तेणं वेमायठितीया बेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेति ४ ॥ से तेणट्टेणं गोयमा ! जाव बेमायविसेसाहियं कम्मं पकरैति ॥ सेवं विमात्रा विशेषाधिक कर्म बांध हैं ? अहो गौतम ! एकेन्द्रिय के चार भेद कहे हैं. तद्यथा - कितनेक समान आयुष्यवाले व समान उत्पन्न होनेवाले यावत् कितनेक विषम आयुष्यवाले व विषम उत्पन्न होनेवाले.. अब जो समः आयुष्यवाले व सम उत्पन्न होनेवाले हैं वे तुल्य स्थितिवाले तुल्य विशेषाधिक कर्म करते हैं, जो सम आयुष्याले व त्रिषम उत्पन्न होनेवाले हैं वे तुल्य स्थितिवाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म करते हैं, { जो विषय आयुष्यवाले सम उत्पन्न होनेवाले हैं वे त्रिमात्रा स्थितिवाले तुल्य विशेषाधिक कर्म करते हैं, और { जो विषन आयुष्य वाले व विषम उत्पन्न होनेवाले हैं. वे विमात्रा स्थितित्राले व विमात्रा विशेषाधिक कर्म
चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा +
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