Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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गमओ णिरवसेसो भाणियव्यो जाव वायर वणस्सइ काइओअपज्जत्तओ वायर वणस्सइ काइएसु अपजतएमु उववाइओ, ॥ ८ ॥अपज्जत्ता सुहुमपुढवि काइयाणं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहएता जे भविए लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता सुहुम पुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए ॥ सेणं भंते ! कइ समदएणं विग्गहेणं उववज्जित्तए ? गोयमा! एगसमइएणं वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गडेणं उववज्जेज्जा ॥से केणटेणं भंते! एवं वच्चइ-एगसमइएणवा जाव उववज्जेज्जा ? एवं खलु गोयमा ? मए सत्तसेढीओ ५० तंजहा-उज्जुआयता जाव अड.
चक्कवाला । उज्जुआयतए सेढीए उववज्जमाणे एगसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। भावाथे
लोक क्षेत्र की नालिका के बाहिर के क्षेत्र में उत्पन्न होने का उपर्युक्त कहा जैसे विशेषता रहित कहना.. यावत् अपर्याप्त पादर वनस्पति अपर्याप्त बादर वनस्पति काया में उत्पन्न होवे वहां तक कहना. ॥ ८॥ अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया लोक के पूर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात कर के
क के पूर्व के चरिमांत में अपर्याप्त सक्ष्म पृथ्वी कायापने उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितने समय के र विग्रह से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! एक समय दोसमय अथवा तीन समय के विग्रह से उत्पन्न होवे.
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी चालाप्रसादजी *