Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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PR+पंचमांग विवाह षण्णति (भगवती) सूत्र 48+
पुढवीकाइएणं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहएत्ता जे भावए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपजत्त मुहुम पुढवीकाइयत्ताए उववा० सेणं भंते!, एवं जहा पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले उक्वाइओ तहा पुरच्छिमिल्ले समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो ॥ ११ ॥ अंपज्जत्ता सुहुम पुढवीकाइयाणं भंते ! लोगस्स दाहिणिले चरिमंते समोहओं समोहइत्ता जे भविए लोगरस दाहिणिले चरिमंते अपज्जत्ता मुहुम पुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए एवं जहा
पुरच्छिमिल्ले समोहओ पुरच्छिमिल्ले चेव उववातिओ तहेव दाहिणिले समोहओ करके पश्चिम के चरिमांत में उत्पन्न होने का कहना. अहो मगमन् ! सब अपर्याप्त सूक्ष्म पथ्वीकाया लोक के पूर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात करके लोक के उत्तर के चरिमांत में उत्पन्न होवे । कितने समय के विग्रह से उत्पन्न होवे ? अहो मौतम ! जैसे पूर्व के चरिमांत में काल करके दक्षिण के चरिमांत में उत्पन्न होने का कहा वैसे ही यहां कहना ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया लोक के दक्षिण के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात करके जो लोक के दक्षिण के चरिमांन में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायापने उत्पन्न होने योग्य होवे यों जैसे पूर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात करना व
चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा +2+
भावार्थ