Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सुहम पुढविकाइयस्स गमओ भाणओ एवं पजत्ता सुहुम पुढवीकाइयस्मवि भाणियन्वो तहेव वीसाए ठाणेसु उववायव्यो ४० ॥ अहे लोय खेत्तणाणीए वाहिरिल्ले खेत्ते समोहओ, एवं वायर पुढवीकाइयस्सवि, अपजत्तगस्स पज्जत्तगस्सय भाणियव्वं । एवं आउकाइयस्स चउब्विहस्सवि भाणियब्ध। मुहुम तेउकाइयस्स दुविहस्सवि, एवं चेव ॥ अपज्जत्ता बादर तेउकातिएणं समयखेत्ते समोहए समोहएता जे भविए उड्डलोगखे. तणालीए वाहिरिले खेत्ते अपज्जत्ता सुहुम पुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए; सेणं भंते
कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ? गोयमा ! दुसमइएणवा तिसमइएणवा, भावार्थ है जैसे कहना. यों सब मीलकर २० आलापक हुए. जैसे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काय का गमा कहा वैसे ही
स सूक्ष्म पृथ्वीकाया का गमा कहना. ऐसे ही बादर पृथ्वीकाया का अपर्याप्त व पर्याप्त के ४० स्था कहना. जैसे पृथ्वीकाया के चार भेद की वक्तव्यता कही, वैसे ही अप्काया के ८० स्थानक की वक्तव्यता कहना. मूक्ष्म तेउकाया के पर्याप्त अपर्याप्त का वैसे ही कहना. अपर्याप्त बादर तेउकाया मनुष्य क्षेत्र में मारणांतिक समुद्धात करके ऊलोक की नाली के बाहिर क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायापने उत्पन% वे तो कितने समय के विग्रह से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! दो समय, तीन समय अथवा चार
भगवती) मूत्र 488 र एण्णत्ति (भगवती).
चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा