Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
488+-- पंचमाङ्ग विवाह पण्णा ( भगवती ) सूत्र
गीललेस्स खुड्डाग कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उववर्जति, एवं अहेव कण्हलेस्से खुडागकडजुम्मा, वरं उवत्राओ जो वालुयप्पभाए सेसं तंचेव वालुयप्पभ पुढवि णीललेस्स खुडाग कडजुम्म णेरइयाणं, एवं पंकप्पभाएवि । एवं चउवि. जुम्मसु णवरं परिमाणं जाणियन्त्रं, परिमाणं जहा कण्हलेस्स उद्देसए सेसं तेहेत्र ॥ सेवं भंते ! भंतेति ॥ इक्कीसइमरस ततिअ उद्देसो ॥ ३१ ॥ ३ ॥ काउलेस्स खुड्डा कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जंति, एवं जहेव कण्हलेस्स खुड्डाकडजुम्मे, णवरं उचवाओ जो रयणप्पभाए सेसं तहेव ॥ रयणप्पभपुढवि काउ
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अहो भगवन् ! नील लेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे कृष्ण लेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म का कहा वैसे ही कहना. परंतु उपपात बालुमभा में शेष वैसे ही. वालुप्रभा पृथ्वी नील लेश्याबाले क्षुल्लक कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं वगैरह सब पूर्वोक्त जैसे कहना. यों पंकप्रभा में कहना. यों चारों युग्म में कहना. परंतु परिमाण भिन्न २ कृष्ण लेश्या के उद्देशा जैसे कहना.. अहो भगवन्! आपके वचन सस हैं यों इकतीसत्रा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ अहो भगवन् ! कापोत लेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न
३१ ॥ ३ ॥
होते हैं ? यों जैसे कृष्ण
49 सीसवा शतक का ३-४ उद्देशे 48
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