Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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2. उबवजेजा, सेसं तंचेक, एवं पजत्ता बादर तेउकाइत्ताए उबवातेयवो; वाउकाइएसु
सुहुमवादरेसु. जहा आउकाइएसु उववाइओ, तहा उबवातेयधो; एवं रणस्सइ काइएसुवि ॥२॥ पजत्ता सुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए । एवं पजत्त सुहुम पुढवीकाइएसुवि, पुरच्छिमिल्ले चरिमंते.समोहणवेत्ता,एएचक्कमेणं एएसु चैव वीससु ठाणेसु उववाएयव्वो जाव वादर वणस्सइ काइएसु पज्जतएसुवि४. ॥ एवं अपज्जए वादर पुढीकाइआवि, एवं पजत्त वादर पुढीकाइओवि, ८० ॥ एवं आउकाइए.
सुवि चउसुवि गमएसु पुरच्छिमिल्ले चरिमंत समाहयाए चव वत्तव्यया; एएसु चेत्र भावार्थ ऐमे ही पर्यत बादर तेउकाया का जानना. जो अपकाया का उपपात कहा वैसे ही सूक्ष्म बादर वायु
काया का जानना. ऐसे ही वनस्पतिकाया का जानना. यो सब मीलकर बस आलापक हुए ॥ २॥ जैसे सक्ष्म अपर्याप्त पृथ्वीकाया के २० आलापक कहे. वैसे ही सक्ष्म पर्यत पृथ्वीकाया के उत्पन्न होने के चीम आलापक कहना. यो सब मील सूक्ष्म पृथयोकाया के ४० अलापक हुए. जैसे सूक्ष्म पृथ्वीकाया के
४. आलाषक कहे वैसे ही पर्याप्त व अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाया के भी ४० आलापक जानना. यो lak. पालापक पृथ्वी काया के हुए. जैसे पृथ्वीकाया क ८० आलापक हुए. वैसे ही अप्काया के सूक्ष्म
पंचपाङ्ग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र
480 चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा
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