Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२०१५
पुंढवीए पुरच्छिम चरिमंते समोहए समोहएत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवाए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते पजत्ता सुहुम पुढवीकाइयत्ताए उवधाजित्तए, सेणं भंते ! कइ सेमएणं विग्गहेणं उवबजे जा ? गोयमा ! एग समइएणवा, दुसमइएणवा, सेसं तंचेव जाव से तेण?णं जाव विग्गहेणं उवनज्जेज्जा, २एवं अपज्जत्ता सुहुम पुढवीकाइओ पुरथिमिले चरिमंते समोहणावेत्ता पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते वादर पुडवीकाइएसु अपजत्तएसु उववातेयव्वा ३,ताहे तेसु चेव पजत्तएसु४, एवंआउक्काइयसुवि, अपजस्तएसु
उववातेयव्वा, ताहे तेसु चेव पजत्तएसु, एवं आउकायसुवि चत्तारि आलावगा भावार्थ
में से ऋज आयात श्रेणी से जो जीव उत्पन्न होवे वह एक ही समय में उत्पत्ति स्थान को प्राप्त करलेता है. जो एक वक्र श्रेणि से उत्पन्न होने वह दो समय में उत्पति स्थान प्राप्त करता है, क्यों की एक समय ऋतु जाते और दुसरा समय पीछा फीरते. और जो दो वक्र श्रेणि से जावें वह तीन समय में उत्पत्ति ।
स्थान को प्राप्त करता है. अहो गौतम ! इस कारन से ऐमा कहा गया है यावत् उत्पन्न होवे ॥२॥ अहो! 3 भगवन् ! इसे रत्नप्रभा में पूर्व के चरिमांत में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया मारणांतिक समुद्धात से काल
करके जो इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पश्चिम के चरिमांत में पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायापने उत्पन्न होने योग्य है ..
पंचांग विवाह पण्णति (भगवती) मूत्र 498
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. १348 चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा -4884
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