Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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18+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र +8+
खुड्डाग तेओग गेरइयावि। एवं जाव कलिओगोत्ति णवर परिमाण जाणियन्वं । परिमाणं पुत्वं भणियं जहा पढमुद्देसए ॥सेवं भंते भंतेत्ति॥ एकतीसइमस्स पंचमो उद्देश॥३१॥५॥ कण्हलेस्स भवासहिय खुड्डाग कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उवयजति ? एवं जहेव ओहिओ कण्हलेस्स उद्देसए तहेव णिरवसेसं चउसुविजुम्मेसु भाणियन्वो जाव अहे सचमपुढवि कण्हलेस्स भवसिद्धिय खुड्डाग ॥ कलिओग गैरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति? तहेव ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ एकतीसइयस्स छट्ठो उद्देसो ॥ ३२ ॥ ६ ॥
णीललेस्स भवसिद्धिय चउसुविजुम्मेसु तहेव' भाणियन्वं जहा ओहिय णील. भवसिद्धिक क्षुल्लक त्रेता नारकी का यावत् कलियुग्म मारकी का मानना. परिमाण पहिले कहा वैसे ही कहना. अहो भगवन्! आपके वचनसत्य हैं यह इकतीसवा शतकका पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा॥ ३१ ॥५॥
अहो भगवन् ! कृष्ण लश्या बाले भवसिद्धिक क्षल्लक कृत युग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं. योग जैसे औधिक का कहा वैसे ही कृष्ण लेश्या का उद्देशा चारों युग्म में कहना. यावत् नीचे की सातवी. पृथ्वी के कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक क्षुल्लक कलियुग्म कहाँ से उत्पन्न होते हैं यों विशेषता राहत कहना अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह इक्तीसवा शतक का छटा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ ३१॥६॥
ल लेश्या वाले भवसिद्धिक के के चारों गमा में अधिक नीले लेश्या उद्देशा कहा वैसे ही कहना.
484 सीसवा शतक का ६-७ उद्देशा Nagit
भावार्थ