Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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488 पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती)सूत्र 482
काइयाय, वादर पुढवीकाइयाइ ॥ कण्हलेस्साणं भंते ! सुहम पुढवीकाझ्या कइविहा १.एवं एएणं अभिलावेणं चउक्कभेदो जहेब ओहिए उद्देसए जाव बणस्सइकाइयन्ति । अणेतरोपवण्णग कण्हलेस्स अपजस सुहम पुवढीकाइयाणं भंते ! कइ. कम्मपगडीओ पण्णताओ, एवं एएणं अभिलावणं जहेव ओहिओ अणेतरोववणग उद्देसओ तहेव पण्णत्ता, तहेब बंधति, तहेब वेदेति ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥१॥॥
कइविहाष्यं भंते ! अपतरोबवण्ागा हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! दो भेद कहे हैं जिन के नाम. सूक्ष्म पृथ्वी काया क बादर पृथ्वी-2
काया. अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले सूक्ष्म पृथ्वीकाया के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! दो. E भेद कहे हैं यो इस क्रम से एकेक के चार २ भेद बौधिक उद्देशा जैसे वनस्पतिकाया पर्यन्त कहना.
अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्न कृष्ण लेश्यावाले अपर्याह सूक्ष्म पृथ्वी काया को कितनी का प्रकृतियों कही । यो इस क्रम से जैसे औधिक अनंतरोत्पत्रक उद्दशा कहा वैसे हो कहना. बम ही बांधी का व वेदने का कहना..अहहे भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥ १. अहो भगवन् ! अतरोन कृष्ण लेश्यायाले । एन्द्रिय कितने. कहे हैं ? अहो मौतम ! पांच, अनंतरोल्पन्न कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रिय कहे हैं. यों इस |
- तेत्तीसंवा शतक का पहिला उद्देशा
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भावार्थ
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