Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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र
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(भयवती) मत्र पति
सुहम पुढवीकाइयाणे भंते ! कइकम्मप्पगडीओ प• एवं एएणं अभिलावणं जहा
ओहिये उद्देसए तहेब हिरवस्सं भाणियव्वं जाव चउद्दसवेदेति ॥ सेवं भंते! भंतत्ति॥ ततीसइमस्स सयस्स ततीओ उद्देसो सम्मत्तो ॥३३॥३॥ + अणंतरोगाढा जहा अणंतरोबवण्णगा ॥ ३३ ॥ ४ ॥ x परंपरोगाढा जहा परंपरोव. वण्णगा ॥ ३३ ॥ ५॥ + अणंतराहारगा जह अणंतरोववण्णगा ॥३२॥ ६॥ + परंपराहारगा जहा परंपरोववण्णगा ॥ ३३ ॥ ७॥ + . अणंतपजचगा जहा अणतरोववणगा ॥ ३३ ॥ ८॥ + परंपर प्रकृतियों कही ? यो इस अभिलापसे जैसे औधिक का उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. पावत् चदामकृति चेदते. अहो भगवन्! आपके वचन सत्य है. यह तेत्तीबा शतकका तीसरा
संपूर्ण हुवा ॥ १३ ॥३॥ + ॥ अनंतर अवगाट का अनंतर उत्पम जैसे कहना ॥ ३३॥४॥ नई परंपरा अवमाढ का परंपरा उत्पन्न जैसे कहना ॥ ३ ॥५॥ + ॥ अनंतर आहारक का
अनंवर उत्पब जैसे कहना ॥ १३ ॥३॥ * ॥ परंपरा आहारक का परंपरा उत्पन्न जैसे करना || # + ॥ अनंतर पर्याप्त का अनंगर उत्पम जैसे काannx
: 421वीसबा शतकका पहिला उद्देशा 418
भावार्थ