Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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( भगवती ) सूत्र पंचमान विवाह पत्ति
भंते ! कइकम्मपगडीको पण्णत्ताओ, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ परंपरोव. वण्णग उद्देसओ तहेव जाब वेदेति ॥ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव आहिओ एगिदियसए एक्कारस उद्देसगा भणिया तहेव कण्णलेस्स सतेवि भाणियन्वा जाव अचरिम चरिम कण्हलेस्सा एगिदिया ॥ वितियं एगिदिय सयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ २॥ + जहा कण्हलेस्सेहिं भणियं एवं णीललेस्सेहिं वि सयं भाणियब्वं, सेवं भंते भंतेत्ति तत्तियं एगिदिय सयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥३॥ x
x एवं काउलेस्सहिं वि सयं भाणियव्वं, गवरं काउलेस्सेत्ति अभिलाओ भाणियवो ॥
घउत्थं एगिदिय संयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ ४ ॥ में जैसे परंपरा उत्पन्नक उद्देशा कहा वैसे ही कहना. यावत् वेदते हैं. यों इस क्रम से जैसे औधिक के अग्यारह उद्देशे कहे वैसे ही कृष्ण लेश्या के अग्यारह उद्देशे कहना. यावत् अचरिम कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रिय. दूसरा एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुवा ॥३७॥२॥
जैस कृष्ण लेन्या का कहा वैसे ही नील लेश्या के इग्यारे उद्देशे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह तीसरा एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हवा ॥३३॥३॥
ऐमे ही कापोत लेश्या के इग्यारे उद्दर्श भी कहना. परंतु कापोत लेश्या का अभिलाप कहना. यों चौथा एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुवा.
.418+ तेत्तीसवा शतक का २-३-४ उदेशा 48
भावार्थ
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