Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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कण्हलेसां भवसिद्धिया एगिदिया पण्णचा, तंजहा पुढवीकाइया जाव वणसइ काइया ॥ कण्ह लेस्स भवसिद्धिय पुढवीकाइयाणं भंते ! कइविहा । पण्णत्ता ? गोपमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-सुहुन पुढवीकाइयाय वादर पुढवीकाइयाय, ॥ कण्ह लेस्स भवसिद्धिय सुहम पुढवीकाइयाणं भंते कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता, तंजहा-पज्जत्तगाय अपजत्तगाय, एवं वायरावी ॥ एवं एएणं अभिलावणं तहेव व उक्को भेदो भाणियन्वो ॥ कण्हलेस्सा भवसिडिय अपजत्ता मुहुम
पुढधीकाइयाणं भंते कइ कम्मरगडीओ पण्णत्ताओ ? एवं एएणं अभिलावणं जहेष भावार्थलेश्यापाले मसिद्धिक एकेन्द्रिय कहे हैं. जिन के नाय-पृथ्वीकाया यावत् वनस्पतिकाया. अहो भग
वन् ! 'कृष्ण लेश्यावाले भवसिद्धिक पृथ्वीकाया के कितने भद्र कहे हैं ? अहो गौतम ! कृष्ण लश्यावाले भवसिद्धिक पृथ्वीकाया के दो भेद कह हैं. सूक्ष्म और बादर. अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यााले भवसिद्धिक सूक्ष्म पृथ्वीकाया के कितने भेद कहे हैं ?अहो गीतम! दो भेद कहे हैं. पर्याप्त और अपर्याप्त. यों बादर clic के भी दो भेद जानना., यो इस अभिलाप से चार २ भेद कहना. अहो भगवन् ! कृष्ण लेझ्यावाले मासिद्धिक अपर्यास मूक्ष्म पृथ्वीकाया को कितनी प्रकृतियों कहीं ? यों इस अभिलाप से जैसे अधिक
विवाह पण्णति (भगवती) स्त्र. 484 पंचा
तेचीसवा शतक का हा उद्दशा