Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - चालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
लेस्स खुड्डाकडजुम्म रइयाणं भंते! कओ उववज्जंति एवं चैव । एवं सरप्पभाएवि । एवं वाभावि । एवं चउसुवि जुम्मेसु णवरं परिमाणं जाणियव्वं परिमाणं जहा कण्हलेस
उद्देसए सेसं तंचेव सेवं भंते! भंतेत्ति ॥ एकतीसइमस्स चउत्थे उद्देसो सम्मत्तो ॥ ३१ ॥ ४ ॥ भवसिद्धिय खुड्डा कडजुम्म परइयाणं भंते ! कओ उववज्जंति किं णेरइए एवं जहेव ओहिओ तत्र णिरवसेसं लावणो परप्पओगेणं उववज्जंति ॥ रयणप्पभा पुढवि भवसिद्धिय खुड्डाकडजुम्मरइयाणं भंते! एवं चेव णिरवसेसं, एवं जाव अहे सन्तमाए। एवं भवसिद्धिय
} लेश्यावाले सुल्लक कृतयुग्म का कहा वैसे ही कहना. परंतु उपपात रत्नप्रभा में शेष वैसे ही. अहो भगवन् ! | रत्नप्रभा के कापीत लेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होवे ? ऐसे ही कहना. यों शर्कर प्रभा वालुकप्रभा का कहना. यों चारों युग्म में कहना. परंतु परिमाण कृष्ण लेश्या के उद्देशे जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों इकतीसवा शतक का चतुर्थ उद्देशा अहो भगवन् ! भवासिद्धिक क्षुल्लक कृत युग्म नारकी कहां से उत्पन्न होने जैसे अधिक का कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना यावत् परप्रयोग से नहीं
{
संपूर्ण हूवा ॥ ३१ ॥ ४ ॥
से यों
उत्पन्न होते हैं. रत्नमभा
(भवसिडिक शुलक कृत युग्म नारकी का वैसे ही कहना. यों सातवी तमतमा पृथ्वी पर्यंत कहना. यों
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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