Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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॥ द्वात्रिंशतम शतकम् ॥ खुडागं कडंजुम्म गैरइयाणं भंते ! अणंतरं उज्वटित्ता कहिं उववजंति किं णेरइएसु है उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववजंति, उवट्टणा जहा वकंतीए ॥ तेणं भंते ! a. जीवा एगसमएणं केवइया उव्वटंति ?. गोयमा ! चत्तारिवा अटुवा, वारसवा, है। सोलसवा, संखेजवा, असंखेजवा, उन्वटंति ॥ तेणं भंते ! जीवा कहं उन्वटंति ?
गोयमा ! से जहाणामए पवए एवं तहेव एवं सोचेवगमओ जाव आयप्पओगेणं
"उवदृति णो परप्णओगेणं उव्वदंति ॥ रयणप्पभ पुढवि खुडाग कडजुम्म एवं भावार्थ , अहो भगवन् ! क्षुल्लक कृतयुग्म नारकी अंतर रहित उद्वर्त कर कहां उत्पन्न होते हैं. क्या नारकी में वा
तिर्यंच में उत्पन्न होते हैं. यों जैसे व्युत्कान्ति(पत्रवणासूत्र)में उद्वर्तना कही तैसी कहना. अहो भावन! वे एक समय में कितने उद्वर्तते हैं?अहो गौतमाचार,आठ,बारह,सोलह,संख्यात व असंख्यात उद्वर्तते हैं.अहो भगवन्! वे जीवों कैसे उद्वर्तते हैं ? अहो गौतम ! जैसे कूदता हुवा जानेवाला यों पूर्वाक्त प्रकार कहना यावत् पर-23 प्रयोग से नहीं उद्वर्तते हैं. रत्नप्रभा पृथ्वी के क्षुल्लक कृतयुग्म यो रत्नप्रभा का जानना. ऐसे ही नीचे की सातवी तमतमा पृथ्वी पर्यन्त कहना. यों क्षुल्लक त्रेता, क्षुल्लक द्वापर युग्म, व क्षुल्लक कलियुग्म का जानना.
पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 41
88. बत्तीसवा शतकका पहिला उद्देशा 4.88
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