Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
णवरं तिणिवा, सत्तवा, एक्कारसवा, षण्णरसवा, संखेजावा, असंखेजावा, सेसं तहेव. एवं जाव अहेसत्तमाएवि ॥ २ ॥ कण्हलेस्स खुड्डाग दावर जुम्म रइयाणं भंते ! कओ उववजति? एवं चैव णवरं दोवा, छवा, दसवा, चउदसवा, सेसं तंचेव । एवं धूमप्पभाएवि जाव अहे सत्तमाएवि ॥३॥ कण्हलेस खुड्डाग कलिओग णेरइयाणं भंते ! एवं चेव णवर एक्कोवा, पंचवा, णववा, तेरसवा, संखेज्जावा, असंखेजावा, सेसं तंचे । एवं
धूमप्पभाएवि, तमाएवि।अहे सत्तमाएवि।सेवं भंते २ त्ति एकतसिइमस्स वितिओ॥३१॥२॥ वाले क्षकल्ल त्रता नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं? अहो गौतम ! ऐसे ही कहना. या तीन, सात, अग्यारह, पनरह संख्यात व असंख्यात हावे वैसे ही कहना. यों भातवी तमा पृथ्वी पर्यंत कहना. ॥२॥ अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले द्वापरयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं? अहो गौतम! ऐमे ही कहना परंतु इतना विशेष दो, छ, दश, चौदह संख्यात व असख्यात उत्पन्न होवे, यों धूम्रप्रभा व नीचे की सातवी तमतम 1 प्रभा का कहना. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् : कृष्ण लेश्यावाले क्षुल्लक कलि युग्म नारकी कहां मे उत्पन्न होते हैं ? कौरह वैसे ही कहना. परंतु परिमाण एक, पांच, नव, तेरह, संख्यात, व असंख्यात उत्पन्न होते हैं. शेष वैसे ही ऐसे ही धूम्रप्रभा तममभा व नीचे की सातवी तमतम प्रभा का कहना. अहो भमवन् ! आप के वचन सत्य है. यह इकतीसा शतक.का दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३१ ॥२॥
*काशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *