Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्र
पंचमांग विवाह एण्णत्ति (भगवती) मूत्र -8
असंखेजावा उववजति । सेसं तंव। एवं जाब अहे सत्तमाए । सेवं भंतेर ति जाव विहरइ ॥ इक्कतीसइमस्स पढमो !॥ ३१ ॥ १ ॥ * ॥ कण्हलेस्स खुट्टाम कडजुम्म णरइयाणं भंते ! कओ उववजंति, एवं जहा ओहियगमो जाव णो परप्पओगेणं, णवरं उरवातो जहा वकंतीए, धूमप्पम पुढवी जेरइयाणं सेसं तहेव । धूमप्पभ पुढवि कण्हलेस्स खड्डाग कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति? एवं चैव णिस्व सेसं, एवं तमाएवि, एवं अहंसत्तमाएवि । णवरं उववाओ सव्वत्थ जहा वकंतीए
॥ १ ॥ कण्हलस्स खुड्डाग तेओग णेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति ? एवं चैव पृथ्वी तक कहना. अहो भगवन् ! आपने वचन सत्य है. यों कह कर यावत विचरने . यह तीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ ३१ ॥१॥
अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्याचाले क्षुल्लक कृत युग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे औधिक भी गमा कहा वैसे ही कहना, यावत् यह प्रयोग से नहीं उत्पन्न होते है. परंतु व्युत्क्रान्ति(पनवनासूत्र) जैसे उपपात कहना. धूम्रप्रभा नारकी का वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! धूम्रप्रभा पृथ्वी कृष्ण लेश्यावाले क्षुल्लक कृत युग्म नार की कहां से उत्पन्न होते हैं ? ऐसे ही विशेषता रहित कहना. यों तमा व सातवी तमतमा पृथ्वी का कहना, परंतु ब्युत्क्रान्ति जैसे उपप्रत कहना. ॥ ॥ अझे भगवन् ! कृष्ण लेश्या ।
4880 एकतीसवा शतक का दूसरा उद्दशा
भावार्थ
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