Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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'सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र +
साणे एवं जहां पंचवीसइमसए अट्ठमुद्देसए णेरइयाणं वत्तव्या तहेव इहवि भाणिवव्त्रा जाव आवप्पओगेणं उववजंति णो परप्पओगेणं उववजंति ॥ ५ ॥ रणप्पा पुढवी खुड्डाग कडजुम्म रइवाणं भंते! कओ उववजंति ? एवं जहा ओहिय णेरइयाशं वत्तव्त्रया सच्चेत्र रयणप्पभाएवि भाणिवव्त्रा जाव णो परप्पओगेणं उववजंति ॥ एवं सक्करप्पभाएचि, एवं जात्र अहे सत्तमाएचि ॥ एवं उ वाओ जहा वकंतीए ॥ असण्णी खलु पढमं, दोच्चेव सरीसीवा तईव पक्खीगाहा ॥ एवं उवत्रातेणेन्या, सेसं तहेव ॥ ६ ॥ खुड्डाग तेओग णेरइवाणं भंते ! कओ उब
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पच्चीसवे शतक के आठवे उद्देशे में नारकी की वक्तव्यत्य कही वैसे ही यहांपर कहना यावत् आत्म प्रयोग { से उत्पन्न होते हैं परंतु पर प्रयोग से नहीं उत्पन्न होते हैं. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के क्षुल्लक कृत युग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? ऐसे ही जैसे अधिक नारकीकी वक्तव्यता कही वही सब रत्नप्रभायें कहना यावत् परप्रयोग ले नहीं उत्पन्न होते हैं; यों शर्कर प्रभा यावत् सातवी तमतम प्रभा का भी जानना. {यों वत्युक्रान्ति जैसे उपपात कहना. अर्थात् असंज्ञी पहिली नरकमें जावे, दूसरी उरपरिसर्प तीसरी में खेचर यां •{पन्नत्रना सूत्र में कही गाथानुनार सब जानना ॥ ॥ अहो भगवन्! क्षुल्लक त्रेता युग्मवाले नारकी कहां से उत्पन्न
एव ती शतक का पहिला उद्देशा