Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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खड्डाग दावर जुम्मे, जगरासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरेमाणे एग पजवसिए सेत्तखडाग कलिओगे, से तेणटेणं आव कलिओगे ॥ २ ॥ खुड्डाग कडजुम्म
रइयाणं भंते! कओ उववजंति-किं णेरइएहिंतो उववजति तिरिक्ख पुच्छा? गोयमा! णोणेस्इएहितो उववजति एवं परयाओ उक्वाओ जहा वकंतीए तहा भाणियव्यो. ॥३॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइयाउववजति ? गोयमा ! चत्तारिवा अट्ठवा, बारसवा, सोल सवा, संखेजावा, असंखजावा उववज्जति ॥ ४ ॥ तेणं भंते !
जीवा कई उववजंति ? गोयमा ! से जहाणामए पत्रएपवमाणे अज्झव. भावार्थ
करते शेष एक रहे सो क्षुल्लक कलियुग्म: अहो गौतम! इसलिये एसा कहा गया यावत् कलियुग्म ॥२॥ अहो भगवन! क्षुल्लक कृत युग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं, क्यानरक में से तिर्यंच में से वगैरह पृच्छा? अहो गौतम! नारकी में से नहीं उत्पन्न होते हैं यो व्युत्क्रान्ति(पन्नानासूत्र में)जैसे नारकी का उपपात कहा है वैसा
कद्दना, अर्थात् तिर्यंच पंचेन्द्रिय व मनुष्य में से उत्पन्न होते हैं. ॥३॥ अहो भगवन् ! वे जीवों एक समय में ल कितने उत्पन्न होते है! अहो गौतम ! चार, आठ, चारह, सोलह, संख्यात व असंख्यात, उत्पन्न होते है. 1}४ ॥ अहो भगवन ! वे जीवों कैसे उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जो कूदता हुवा जाने वाला वगैरे
१०१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी मालाप्रसादजी.