Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अन्य
चरिमोवि, अचरिमोवि, एवंचव णवर अलस्से केवली अजोगीण भण्णइ, सेसे तहेव ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ एए एक्कारसवि उद्देसगा ॥ समोसरणसयं सम्मतं इति
तीसइम सयं सम्मतं ॥ ३०॥ उद्देशे कहना. परंतु अनतरके चारोंका एक गमा और परंपरा के चारोंका एक गमा, यो चरिम व अचरिमका जानना. परंतु अलेशी, केवली व अयोगी कहना नहीं. शेष सब वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यो अग्यारह उद्देशे संपूर्ण हुए. यह समोसरण नामक तीसवा शतक संपूर्ण दुवा ॥ ३० ॥
भावार्थ
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुकदवसहायजा ज्वालाप्रमादजी *
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