Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
वार्थ
पंचमांग विवाह प्रणत्ति ( भगवती ) सूत्र
एएसव्वे भवसिडिया णो अभवसिद्धिया, सेसा सधे भवसिद्धिया ॥ सेवं भंते २ ति ॥ तीसइमस्स वितिओसो ॥ ३० ॥ २ ॥ परंपरावयष्णगाणं भंते ! णेरड्या किं किरिया वादी ? एवं जहेब ओहियादेसर तक परंपरो ववष्णसुवि णेरइयादीओ तहेब णिरवसेसं भाणियव्या, महेव तियदंडगा संगहिओ ॥ सेवं भंते! भंतेति ॥ जाव विहरइ || तीसइमेस्स ततिओ उदेसो ॥ ३० ॥३॥ एवं एएणं कमेणं जयंत्र बंधित उद्देसगाणं परिवाड़ी सच्चेत्र इहंनि जाव अचरिमां उद्देसओ, पवरं अनंतरो चत्तारिव एकगमा, परंपरो चत्तारिवि एक्कंगमएणं, एवं पर्यन्त कहना. परंतु विशेषता यह है कि जिन को जो होवे उन को वहीं कहना. जो क्रियावादी, शुक्लपक्षी सममिध्यादृष्टि ये सब भवसिद्धिक हैं परंतु अभवसिद्धिक नहीं हैं और शेष स भवसिद्धिक व अभवसिद्धिक दोनों जानना. अहो भगवन्! आपके वचन सत्य हैं. यह तीसत्रा शतकका दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ||३०||२|| अहो भगवन् ! परंपरा उत्पन्न नारकी क्या क्रियावादी यो जैसे औविक उद्देशा कहा वैसे ही परंपरो उत्पन्न ( उत्पन्न हुवे एक समय से अधिक काल हुआ उन ) नरकादि का विशेषता रहित तीन दंडक कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यो तीसवा शतकका तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३० ॥ ३ ॥
य। इसी क्रम से जैसे बंधी शतक में झग्यारा उद्देशे की परिपाटी कहीं वैसे ही नत्र यहां पर भी अचरिम पर्यन्त इम्यारे ।
4. तीसंत्रा शतक का २-३ उद्देशा
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