Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांम विवाह पण्यत्ति ( भगवती ) मूत्र +8+
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यव्वं ॥ १॥ किरियावादिणं भंते ! अणंतरोववण्णगा गैरइया कि णेरइयाउयं परेति पुच्छा ? गोयमा ! णो णेरइया-णो तिरि-णो मणु-णो देवायुउयं पकरेंति ॥ एवं अकिरियावादिवि, अण्णाणियादिवि, वेणइयवादिवि, ॥ २ ॥ सलेस्साणं भंते ! किरियावादि अणतरोववण्णगा णेरड्या किं णेरइयाउयं पुच्छा ? गोयमा ! णो गैरइयाउयं जाव णो देवाउयं पकरेंति ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ एवं सब्बट्टाणेसु अणंतरोववण्णगाणेरड्या णकिंचिवि आउयं परति जाव अणागारोवउत्तेवि ॥ एवं
जाव बेमाणिया णवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं ॥ ३ ॥ वह कहना ॥१॥ अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्नक क्रियावादी नारकी क्या नारकी का आयुष्य बांधे पृच्छा, ! अहो गौतम ! नारकी, तिर्यंच मनुष्य व देवता का आयुष्य बांधे नहीं, ऐसे ही अक्रियावादी, अज्ञानवादी, व विनयवादी का जानना ॥२॥ अहो भगवन् ! सलेशी अनंतरोत्पनिक क्रियावादी नारकी क्या नरक का आयुष्य करे पृच्छा ? अहो गौतम ! नारकी यावत् देव का आगुष्य करे नहीं. ऐसे ही वैमानिक पर्यन्त कहना. यों सब स्थानमें अनंतरोत्पन्नमारकी किसीका भी आयुष्य नहीं बांधते हैं. यों अनाकारोपयोग पर्यन्त कहना. ऐने ही वैमानिक पर्यन्त कहना. परंतु विशेषता यह कि मिन को जो होवे बह काना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! क्रियावादी अनंतरोत्पभक नारकी क्या भवसिदिक
तीमत्रा शतक कादूमरा उद्देशा
भावार्थ
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या
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