Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
● मकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी
अस्थि || मणुस्सा जहा ओहिया जीवा ॥ वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा ॥ सेवं भंते २ ति ॥ तीसइमस्सय पढमो ॥ ३० ॥ १ ॥ अतरोववण्णगाणं भंते! णेरइया किं किरियावादि पुच्छा ? गोयमा ! किरियावादि जाव वेणइयवादिवि ॥ सलेस्ताणं भंते! अनंतशेववण्णगा णेरड्या किं किरियावादि एवं चेत्र, जहेब पढमुद्देसे णेरइयाणे वत्तव्वया तदेव इहेवि भाणियन्त्रा, वरं जं जस्स अस्थि अनंतराववण्णगाणं णेरइयाणं तं तस्स भाणियन्त्रं ॥ एवं सव्वजीवाणं जाव वैमाणियाणं णवरं अनंतशेववण्णगाणं जं जहिं अत्थि तं तहिं भाणि{जैसे, मनुष्य का औधिक जीव जैसे, वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का असुरकुमार जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह तीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३० ॥ १ ॥
अहो भगवत् ! अनंतर उत्पन्न नारंकी क्या क्रियावादी हैं पृच्छा ! अहो गौतम ! क्रियावादी हैं यावत् | विनयवादी भी हैं. अहो भगवन्! सुलेशी अनंतरोत्पन्नक नारकी क्या क्रियावादी? ऐसे ही जैसे पहिले उद्देशे में नारकी की वक्तव्यता कही वैसे ही कहना. विशेष में जो जिन को होवे वह अनंतरोत्पन्न नारकी को कहना. ऐसे ही जीवों को यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना. परंतु स अनंतरोत्पन्नक को जहां जो होत्रे वहां
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