Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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लेस्से उद्देसए सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ एकतीसइमस्स सत्तमो उद्देशो ॥ ३१ ॥ ७ ॥ काउलेरसे भवसिद्धिय चउसुवि जुम्मेसु तहेव उववातेयन्वो जहेव ओहिए काउलेस्स उद्देसए ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ एकतीसइमस्स अट्ठमो उद्देसो ॥ ३१ ॥ ८ ॥ जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देसग्ग भणिया, एवं अभवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देसग्गा भाणियव्वा, जाव काउलेस्स उद्देसओत्ति ॥सेवं भंते २त्ति ॥ एक्क हादसम॥३॥१२॥ एवं सम्मट्टिीहिवि लेस्सा संजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा णवरं सम्मट्ठिी पढमवितिएसु
4अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
.प्रकाशक-राजावादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों इकतीसा शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ ३१॥७॥
कापोत लेश्या भवसिद्धिक के चारों गमा में वैसे ही, उपपात औधिक कापोत लेश्या जैसे कहना. अहो भगवन् ! आप यस सस्वयों इकतीसवा शतक का आठया उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ ३१॥८॥ __ जैसे भवसिद्धिक के चार उद्देशे कहे वैसे ही ममुच्चय अभवसिद्धिक, कृष्ण लेफ्था वाले अभयसिद्धिक, नील लेश्या वाले अभवसिद्धिक, व कापोत लेश्या वाले अभवमिद्धिक यों चार उद्देशे कहना. अहो भगवन् ।
आपके वचन सत्य है. यों एकतीसवे शतक के नव से बारह तक चार उद्देशे संपूर्ण हुवे ॥ ३१ ॥२॥१२॥ म एसे ही समदृष्टि की साथ चार उद्देशे कहना, परंतु विशेषता यह कि पहिले दूसरे दो उद्देशे में सातवी
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