Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48+ पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 480+
वाणमंतर जोइसिय वैमाणिए जहा णेरइए ॥ २ ॥ अचरिमेणं भंते ! णेरइए णाणा वरणिजं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेब पात्रं णवरं मगुस्सेषु सकसा - ईसु लोभकसा सुय, पढमवितिया भंगा ॥ सेसा अट्ठारस, चरिम विहुणा, सेसं तहेव जव मानिया || दरिसष्णावरणिजंपि एवंचेत्र णिरवसेसं ॥ वियणिजे सव्वत्थवि पढमवितिया भंगा जान बेमाणिया, णवरं मणुस्सेमु अलेस्सी केवली अजोगीय णत्थि || अचरिमेणं भंते! णेरइए मोहणिज कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! जहेब पात्रं तेव णिरवसेसं जात्र वेमाणिए || अचरिमेणं भंते ! णेरइए आउयं कम्मं किं बंधी केवल ज्ञानी व अयोगी की पृच्छा करना नहीं, क्यों कि वे चरिम ही होते हैं. व्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे कहना || २ || अहो भगवन् ! नावरणीय का बंध कीया पृच्छा ? अहो गौतम ! जैसे पापकर्म का कहा वैसे
शेष वैसे ही कहना. वाणअचरिम नारकीने क्या ज्ञा-) ही कहना. विशेष में मनुष्य,
{ सकषायी, लोभ कषायी इन में पहिला दूसरा भांगा कहना. शेष अठारह में अन्तिम भांगा छोड़कर तीन भांगे कहना. शेष वैमानिक पर्यंत वैसे ही कहना. दर्शनावरणीय का वैसे ही कहना. वेदनीयका वैमानिक पर्यंत पहिला दूसरा भांगा, परंतु मनुष्य में अलेशीमें केवली में व अयोगी में यह भांगा नहीं हैं. अहो भगवन्! अचरिम नारकीने
++- छब्बीसवा शतक का अभ्यारवा उद्देशा 98