Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२१२६
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री भयो लक ऋषिजी
* सप्त विंशतितम् शतकम् * जीवाणं भंते! पाव कम्मं किं करिंसु करेंति करिस्सति १, करिसु करेति गरिसति २, करिसु णकाति करिस्संति ३, करिसुय करिति णकरिस्संति ४, ? गोयमा ! अत्थेगइए करेंसु करेंतिं करिस्संति, अत्थेगइए करिसु करिति णकरिस्संति,अत्थेगइए करिंसु णकरिति करिस्संति; अत्यंगइए कारसु णकरिंति णकारस्संति ॥१॥ सलेस्सेणं भंते ! जीवे पावं कम्मं एवं एएणं अभिलावेणं जच्चेव वंधिसए वत्तव्यया सच्चेव गिरवसेसा भाणियव्वा, तहेव णव दंडग संगहिया, एकारस उद्देसगा भाणियव्वा ॥ करिसुग सयं सम्मत्तं ॥ २७ ॥
छब्बीसवे शतक में कर्म बँधका कहा वह पापकर्म करने से होता है इसलिये इस शतक में पापकर्म करने का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! जीवने गत काल में पापकर्म क्या कीया, वर्तमान में करता है या आग मिक में करेगा कीया, करते हैं व नहीं करेंग, २ कीया नहीं करते व करेंगे, ३ अथवा कीया नहीं करते हैं व नहीं करेंगे ४? अहो गौतम! कितनकन काया, करते हैं व करेंगे, कितनेकने कीया करते हैं व नहीं। करेंगे, कितनेकने कीया नहीं करते हैव करेगे और कितनेकने कीया है करते नहीं हैं नहीं करेंगे. ॥१॥ अहो भगवन् ! सलशी जीवने पापकर्म वगैरह इस अभिलाप से जैसे बंधि शतक में वक्तव्यता. कही के सब अग्यारह उद्देशे इयां कहना. यों करिंसु नामक का सत्तावीसवा शतक समास हुवा. ॥२७॥
himir *प्रकाशक-राजाबहादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी
भावार्थ