Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांग विवाह पण्णन्ति ( भगवती) मूत्र
अंतरोववण्णगाणं भंते ! णेरइया पावं कम्म कहिं समजिणिसु कहिं समायरिंसु ? गोयमा ! सव्वेवि ताव तिरिक्ख जोणिएसु होज्जा, एवं एत्थवि अट्ठ भंगा ॥ एवं अणंतरोववण्णगाणं णेरइयादीणं जस्स 'जं अत्थि लेस्सादीया अणागारोवओग
२९२९ पज्जवसाणं तं सव्व एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं णवरं अणंतरेसु परिहरियव्या ते जहा बंधिसए तहा इहपि ॥ एवं णाणावरणिज्जेणवि दंडओ ॥ एवं जाव अंतराइएणं गिरबसेसं एसोवि णव दंडग संगहिओ उद्देसओ भाणियन्वो ॥
सेवं भंते २ त्ति ॥ अट्ठवीसइमं सयस्स विओउद्देसो ॥ २८ ॥ २ ॥ है अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्नक नारकीने पाप कर्म कहां कीया ? अहो गौतम ! सब प्रथम तियैच में हो | ईयों आठ भांगे कहना. ऐसे ही अनंतरोत्पन्नक नारकी आदि को जो लेश्या यावत् अनाकारोपयोग होवे) वे इस स्थान में भजना (पावे नहीं भी पाय) से यावत् वैमानिक पर्यंत कहना. विशेषता यह कि जैसे बंधी शतक : में अनंतरोत्पन्नक में मिश्रदृष्टि मनयोग वचन योग का परिहार कीया था वैसे ही यहांपर भी परिहार करना ऐसे ही ज्ञामा वरणीय यावत् अंतराय पर्यंत नव दंडक वाला उद्देशा यह भी कहना. अहो भगवन ! आपके वचन सत्य हैं. यह अठावीस वा शनक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुआ. ॥ २८ ॥ २ ॥ ...
48 अठ्ठावीसवा शेतक का दू
भावार्थ
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