Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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43 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अणंतरोषवण्णगाणं भंते ! मेरइयाणं पावं कम्मं किं समायं पटविमु समायं णि?विंसु पुच्छा? गोयमा ! अत्थेगइया समायं पट्टीवसु समायं गिट्टविसु, अत्थे गइया समायं पट्ठविंसु विसमायं णिविंसु.॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ अत्थेगड्या' समायं पविस तंचेव गोयमा! अणंतरोववण्णगाणेरइया दविहा पपणचा तंजहा. अत्थेगइया समाउया समोववण्णगा, अत्थेगइया समाउया विसमोववपणगा, तत्थणं जे ते समाउया समोववण्णगा, तेणं पावं कम्मं समायं पट्टर्विसु समायं णिटुविसु ॥ तत्थणं जे ते समाउया विसमोववण्णगा तेणं पावं कम्मं समायं पटुविसु विसमायं गिट्ठविसु से तेण?णं तंचेव ॥ सलेस्साणं भंते ! अणंतरोववण्णगा गेरइया पावं अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्नक नारकीने क्या पापकर्म सपकाल में वेदकर विषम काल में निर्जरा ग पुच्छा अहो गौतम! कितनेकने समकाल में वेदकर समकाल में निर्जरा की, और कितनेकने समकाल, में वेद कर विषय काल में निर्जरा की. अहो भगवन् ! ऐसा किप्त कारन से कहा गया है ? अहो गौतम! अनंतरोत्पन्न नारकी के दोभेद कहे हैं तद्यथा कितनेकसमआयुष्यवाले व समउत्पन्न होने वालेहैं और कितनेक विषम आयुष्य वाले व विषय उत्पन्न होने वाले हैं. इस में जो सपआयुष्य वाले व समउत्पन्न होने वाले हैं वे समकाल में पाप कर्म वेदकर समकाल में निर्जरते हैं और सम आयुष्य वाले व विषम उत्पन्न होने वाले हैं।
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी
भावा
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