Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी *
यवं, मणुस्सा जहा जीवा तहेव गिरवसेस, ॥ वाणमंतर जोइसियइ वेमाणिया जहा है। असुर कुमारा ॥ २ ॥ किरिया वादीणं भंते ! जीवा किं णेरइयाउय पकरेंति तिरिक्खजोणियाउयं-मणुस्साउयं-देवाउयं-पकरेंति ? गोयमा ! णोणेरइयाउयं पकरेंति, णो तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति, मणुस्सा उयं-देवाउयं पकरेति. जइ देवाउयं पकरेंति किं भवणवासी देवाउयं पकरेंति जाव वेमाणिय देवाउयं पकरेंति? गोयमा! भवणवासि देवाउयं पकरेति, णो वाणमंतर देवाउयं पकरेंति णो जोइसिय देवाउयं पकरेंति,
वेमाणिय देवाउयं पकरेंति ॥ अकिरियावादीणं भंते ! जीवा किं णेरइयाउयं पकरति जीव जैसे विशेषता रहित कहना. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का. अमुरकुमार जैसे कहना ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! क्रियावादी नीव क्या नरक का आयुष्य करे. तिर्यंच का आयुष्य करें, मनुष्य का । आयुष्य करे, या देव का आयुष्य करे अहो गौतम! नारकी का आयुष्य करे नहीं, तिर्यंच का भी करे नहीं परंतु मनुष्य का व देवताका आयुष्य करते हैं. यदि देवताका आयुष्य करे तो क्या भवनवासी देव का आयुष्य करे यावत् वैमानिक देवताका आयुष्य करे ?अहो गौतम! भवनवासी देवताका आयुव्य करतेहैं वाणव्यंतर व नोतिषी का आयुष्य करते नहीं हैं परंतु वैमानिक देवका आयुष्य करतेहैं. अहो भगवन्! अक्रि
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ