Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भंगो, सेस पदेसु सम्बत्थ पढमततिय भंगा, मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइंमिय ततिय भंगो॥ अलेस्स केवलणाण अजोगीया णपुच्छिजंति, सेस पदेसु सव्वत्थ पढम ततिया भंगा, वाणमंतर जोइसिया वेमाणिया जहा णेरइया॥णामं गोयं अंतराइयं च जहेव णाणावरगिजं तहेव णिरवसेसं सेवं ते ! भंतेभत्ति जाव विहरइ॥ छन्वीसम
बंधिसयरस एकवीसइमो उदेशो ॥ २६ ॥ ११ ॥ छवीसमं बंधि सयं सम्मत्॥२६॥ के सममिथ्यात्व में एक तीसरा भांगा, शेष सब पद में पहिला तीसरा भांगा. मनुष्य के सममिथ्यात्व, अवेदक, व अपायी में तीसरा भांगा. अलेशी केवल ज्ञान व अयोगी की पृच्छा नहीं करना. शेष सव पद में पहिला तीसर। भांगा. चाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे कहना. नाम, अंतराय का ज्ञानावरणीय कर्म जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों कहकर यावत् । विचरने लगे. यह छब्बीसा बंधी शतक का अग्यारहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २६ ॥ ११॥ यह छब्बीसवा बंधी शतक समाप्त हुवा ॥ २६ ॥
वार्थ
सरपंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488+
48.छब्बीसवा शतक का अग्यारवा उद्दशा 480
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