Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सत्र
सयस्स अट्ठमो सम्मत्ती ॥ २६ ॥ ८ ॥ परंपरोपज्जतएणं भंते ! णेरइए पावं कम्मं किं बंधइ पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव
२१२१ परंपरोक्वन्नहिं उद्देसो तहेवो णिरवसेसो भाणियन्वो ॥ २६ ॥ ९॥ चरिमेणं भंते ! जेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? 'मोयमा! एवं जहेव परंपरोव वण्णएहिं उद्देसो तहेव चरिमेहिं गिरवसेसं ॥ सेवं भंते २त्ति॥ बंधिसयस्स ।२६।१०।
अचरिमेणं भंते ! णेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए जहेव भावार्थ
Eसवा बंधी शतक का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २६ ॥ ८॥ . { अहो भगवन् ! परंपरा पर्याप्त नारकीने क्या पापकर्म का बंध किया वगैरह पृच्छा ? इस का जैसे परं-: परोत्पन्न उद्देशा कहा वैसे ही विशेषतारहित कहना. यो छब्बीसवा बंधी शतकका नवया उद्देशा संपूर्ण हुवा।२६| | ___ अहो भगवन् ! चरिम नारकीने क्या पापकर्म का बंध कीया पृच्छा ? अहो गौतम जैसे परंपरा उत्पन्न का उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों छब्बीसवा 12 शतक का दशवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १०॥
भहो भगवन् ! अचरिम नारकीने पापकर्म का बंध कीया पृच्छा, अहो गौतम ! जैसे पहिला
विवाहपण्णचि ( भगवती) मंत्र 488
28छन्चीसवा शतकका ९-१०-११. उद्देशा 88