Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पढमुद्देसए तहेव पढ़मवितिओ भाणियन्वो, सम्पत्य जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण।। अचरिमेणं भंते ! मणुस्से पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी बंधइ णबंधिस्सइ. अत्थेगइए बंधी णबंधइ णबधिस्सइ ॥ १ ॥ सलेस्सेणं भंते ! अचरिमे मणुस्से पावं कम्मं किं बंधी एवंचेव तिणि भंगा, चरिमविहुणा भाणियव्वा ॥ एवं जहेव पढमुद्देसो गवरं जेषु तत्थ बीस मु पदे तु चत्तारिभंगा, तेमु इहं आदिल्ला तिण्णि भंगा भाणियब्वा, चरिम भंग
वजा ॥ अलेस्सा केवलणाणी अजोगीय, एएतिण्णिवि णपुच्छिजंति, सेसं तहेव ॥ उद्देशा कहा वैसे पहिला दूसरा भांगा कहना. यों तिर्यंच पंचेन्द्रिय पर्यंत सब को कहना. अहो भगवन् ! अचरिम मनुष्यने क्या पापकर्म का बंध कीया ? अहो गौतम ! १ कितनेकने बंध कीया, कितनेक बंध करते है। हैं व कितनेक करेंगे, २ कितनेकने बंध कीया, कितनेक करते हैं व कितनेक नहीं करेंगे और कितनेक बंध कीया बंध नहीं करते हैं व बंध नहीं करेंगे यों ३ भांगे पाये॥॥अहो भगवन्! भलेशी अचरिमो क्या पापकर्मका बंधकीया ऐसे ही तीन गमा अन्तिम हुवे छोडकर कहना. ऐसे ही जैसे पहिला उद्देशा कहा वैसे ही यहां कहना. विशेष में वहां निनषीस पदों में चार२ भांगे कहे थे, हायपर उसमे से अन्तिम भांगा छोडकर तीनर भांगे कहना. अलेशी,
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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