Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जाव थणियकुमारो ॥ पुढवीकाइयाणं सव्वत्थवि च तारि भंगा, णवरं कण्हपक्खिय पढम तितिय भंगा ॥ तेउलेस्से पुच्छा ! गायमा ! बंधी णबंधइ बंधिस्सइ ॥ सेसेसु सव्वत्थ चत्तारि भंगा ॥ एवं आउकाइया, वणस्सइकाइयाणवि णिरव सेसं तेउवाइय वाउक्काइयाणं सव्वत्थवि पढमततिया भंगा ॥ वेइंदियतेइंदियचरिंदियाणपि सव्वत्थवि पढम ततिया भंगा, णवरं सम्मते, अभिणिवाहियणाणे सुयणाणे ततिओ भंगो; पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढम ततिया भंगा ॥ सम्मामिच्छत्ते
ततिय चउत्थो भंगो; सम्मत्ते गाणे अभिणिवोहियणाणे सुअण्णाणे ओहिणाणे एएसु भावार्थ परंतु कृष्ण पक्षिक पृथ्वीकाया में पहिले दूसरा भांगा कहना. ते जो लेश्या की पृच्छा? अहो गौतम! बंध कीया,बंध
नहीं करते हैं व बंध करेंगे शेष सब में चार भांगे ऐसे ही अपफाया व वनस्पति काया का जानना
काया में सर्वत्र पहिला तीसरा भांगा. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय में सर्व स्थान पहिला तीसरा भांगा। परंतु सम्यक्त्वदृष्टी, आभिनिवाधिक ज्ञानी, व श्रुन ज्ञानी में तीसरा भांगा. तिर्यंच पंचेन्द्रिय के कृष्ण पक्षिक
में पहिला तीसरा भांगा,मम्यमिथ्यातदृष्टी में तीसराचौथा भांगा,सम्यक्त्वदृष्टी ज्ञान में आभिनिवाधिक ज्ञान में 10 श्रुत झान में च अवधि ज्ञाय में इन पांच में दूसरा छोडकर तीन भांग; शेष में चार भांगे. मनुष्या का समुच्चय।
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
.प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.