Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ ।
428 पंचांग विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
पंचसु त्रितिय विहुणा भंगा, सेसेसु चत्तारि भंगा ॥ मणुस्साणं जहा जीवाणं, नवरं सम्म अभिणिबोहीयाणे सुयणाणे ओहियणाणे एएसु वितिय विहुणा भंगा, सेसं तंत्र ॥ वाणमंतर जोइसिय त्रेमाणिया जहा अमुरकुमारा ॥ णाम गोयं अंतराइयंच एयाणि जहा णाणावरणिजं ॥ सेवं भंते! भंतेत्तिं ॥ जाव विहरइ ॥ बंधी सयरस पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २६ ॥ १ ॥
अनंतराव ववष्णएणं भंते! रइए पावं कम्मं किं बंधी बंबइ बंधिस्सइ पुच्छा ? तहेव गोयमा ! अत्थेगइए बंधी पढम वितिया भंगा ॥ १ ॥ सलेस्सेणं भंते ! अनंतरोव
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जीव जैसे कहना. परंतु सम्यक्त्वदृष्टी, आभिनिदोधिक ज्ञान, श्रुत ज्ञान व अवधि ज्ञान इन में दूसरा भांगा छोड़कर अन्य तीन भागे कहना. शेष सब वैसे ही जानना. वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिकका असुरकुमार । जैसे कहना. नाम कर्म, गोत्र कर्म व अंतराय कर्म का ज्ञानावरणीय कर्म जैसे कहना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं, यों कहकर भगवन् गौतम स्वामी विचरनेलगे | यह छब्बीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ २६ ॥ १ ॥
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"अहाँ भगवन ! अनंतशेपपातिक नारकीने पापकर्म का क्या बंध किया, बंध करते हैं व बंध करेंगे:
+8+ छब्बीसा शतक का दूसरा उद्देशा
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