Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ पचमांग विवाह एणत्ति ( भगवती) मूत्र
जीवपदे वत्तवया,सच्चैव णिरवसेसा भाणियन्वा ॥ वारणमंतररस जहा असुरकुमाररस ।। जोइसियस्स, वेमाणियस्स एवं चेव, णवरं लेस्साओ जाणियन्नाओ , सेसं तहेव भाणियन्वं ॥ १२ ॥ जीवेणं भंते ! णाणावरणिजं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ, एवं जहेव पावकम्मरस वत्तव्यया भणिया तहेव णाणावरणिज्जस्सवि वत्तव्वया भाणि. यन्वा, णवरं जीवपदे मणुस्सपदेय सकसायी जाव लोभकसायम्मिय पढमवितिया भंगा अवसेसं तंचेव जाव वेमाणिए ॥ एवं दरिसणावरणिजेणवि दंडगो भाणियन्यो णिरवसेसं ॥१३॥ जीवणं भंते ! वेदणिजं कम्मं किं बंधी पुच्छ।? गोयमा ! अत्थेगइए कहना. वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का असुरकुमार जैसे कहना परंतु जहां जितनी लेश्याओं होवे वहां उतनी लेश्याओं कहना. शेष सब वैसे ही कहना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! जीवने क्या ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कीया वगैरह पृच्छा? अहो गौतम ! जैसे पापकर्म की वक्तव्यता कही वैसे ही ज्ञानावरणीय कर्म की वक्तव्यता कहना. परंतु जीव पद व मनुष्य पद सकपायी यावत् लोभ कषायी में पहिला व दसरा यो दो भांगे कहना. क्यों कि ज्ञानावरणीय कर्म बंधक वीतरागी नहीं होने हैं. शेष वैमानिक पर्यंत वैसे ही कहना. ऐसे ही दर्शनावरणीय का दंडक विशेषता रहित कहना ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! जीवने वेदनीय
छत्रीसंवा शतकका पहिला उद्देशा 48
भावार्थ
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