Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 438+
वइजोगिस्सवि, कायजोगिरसवि ॥ अजोगीस्स चरिमो ॥१०॥ सागारोवउत्तै चत्तारी, अणगारोवउत्तेवि चत्तारि भंगा ॥ ११ ॥णेरइयाणं भंते ! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधस्सई पुच्छा ? गोयमा ! अत्येगइए बंधी पढमवितिया ॥ सलेस्सेणं भंते ! णेरइए पावं कम्मं एवं चेव ॥ एवं कण्हलेस्सेवि, गीललेस्सेवि, काउलेस्सेवि ॥ एवं कण्हपक्खिएवि ; सुक्कपक्खिएवि ॥ सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्ममिच्छादिट्ठी ॥ णाणी अभिणिवोहियणाणी सुअगाणी, ओहिणाणी, अण्णाणी, मइअण्णाणी सुअण्णाणी, विभंगणाणी ॥आहारसण्णोवउत्ते जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते ॥ सवेदए जाव योगी में चार भांगे, अयोगी में एक अन्तिम भांगा||१०॥ साकारोपयोग में व अनाकारोपयोग में चार भांगे॥११॥ अब चौबीस दंडक आश्री अग्यारहद्वार कहते हैं. अहो गवन् ! नारकीने क्या पापकर्म शंधे, वांधते हैं व बांधेगे पृच्छा ? अहो गौनय ! कितनेकने बांधे, बांधते हैं व वांधेगे, यों पहिला दुसरा भांगा जानना. सलेशी नारकीने क्या बंध कीया पृच्छा ? अहो गौतम ! पहिला व दूसरा ऐसे दो भांगे पाते हैं. ऐसे ही कृष्ण लेशी, नील लेशी व कापुत लेशी, कृष्ण पक्षिक, शुक्ल पक्षिक, समदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सममिध्यादृष्टि, ज्ञानी, आभिनिवोधिक ज्ञानी, श्रत ज्ञानी, अवधि ज्ञानी; मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानी, विभंग ज्ञानी, सवेदी
छब्बीसवा शतकका पहिला उद्देशा
भावार्थ
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Aakhaininine
यास्ता
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