Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
'णं सुअअण्णाणीणं, विभंगाणाणीवि ॥ ६ ॥ आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसणो । वउत्ताणं पढमवितियाणोसण्णो वउत्ताणं चत्तारि ॥ ७ ॥ सवेदगाणं पढमवितिया ॥..
एवं इत्थिवेदगा पुरिसवेदगा णपुंसगवेदगाणवि; अवेदगाणं चत्तरि भंगा ॥ ८ ॥ १... सकसायीणं चत्तारि, कोह कसाईणं पढस वितिया भंगा ॥ एवं माणकसायस्सवि ॥
मायाकसायस्तवि ॥ लोभकसायस्स चत्तारि भंगा ॥ अकसाईणं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा! अत्थेगइए बंधी णबंधइ बंधिस्सइ ॥ अत्थे
गइए बंधी णबधइ णबंयिस्सइ ॥ ९ ॥ सजोगिस्स चउभंगो, एवं मणजोगिस्सवि, में पहिला दूसरा यों दो भांगे कहना ||६|| पाहार संज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रह संज्ञोपयुक्त में पहिला दूसरा दो भांगे, नो मंज्ञोपयुक्त में चार भांगे॥७॥ सवेदी, स्त्रीवेदी, पुरुष वेदी व वपुंसक वेदी में पहिला दूसरा यो दोभांगे अदीमें चारभांगे।८||सपायी में चार. क्रोध कषायी, मानकषायी व मायाकषायीमें पहिला दूसरा लोभ भांगा कषायी में चार भांग अकमायीकी पृच्छा हो गौतम! कितनेकने गतकालमें बंधकीया, वर्तमानमें से
बंध नहीं करते हैं परंतु आगमिकमें बंध करेंगे और कितनेकने बंधकीया,बंध नहीं करते हैं व बंध नहीं करेंगे रयों तीसरा चौथाभांगा उपशम व क्षय के श्रेणि आश्री जानना॥२॥ सयोगी, मनयोगी, वचनयोगी व काया
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालामसादजे *
भावार्थ