Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमा विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 48
अवेदए अकसायी. सागारोवउत्ते अणागारोवउत्ते, एएसु ततियविहुणा ॥ अजोगम्मिय चरिमो, सेसेसु पढमवितिया ॥णेरइयाणं भंते ! वेदणिज्ज कम्मं किं बंधी रंधइ बंधिस्सइ ? एवं णेरइयादीया जाव वेमाणियत्ति जस्स जं अस्थि सव्वत्थवि पढम वितिया, णवरं मणुसेसु जहा जीवे ॥ १४ ॥ जीवेणं भंते ! मोहणिजं कम्मं किं चंधी बंधइ बंधिस्सइ ? जहेव पावं कम्मं तहेव मोहणिजंपि णिरवसेसं जाव वेमाणिए ॥१५॥ जीवेणं भंते ! आउयकम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ ? गोयमा ! अत्थेगइए
छब्बीसवा शतक का पहिला उद्देशा
मांगे, आभिनिवोषिक ज्ञानी यावत् मनापर्यय ज्ञानी में पहिला दूसरा, भां। केवलज्ञानी में तीसरा छोडकर तीन भांगे. ऐसेही नो मज्ञोपयुक्त, अवेदी, अपायी, माकारांप योग व अनाकारोपयोग में तीसरा छोडकर | तीन मांगे जानना. अयोगी में एक अन्तिम भांगा कहन', और शेष में पहिला दूसरा भांगा कहना. अहो । भयवन् ! नारकीने क्या वेदनीय कर्म का बंध कीया, करते हैं या करेंगे वगैरह पृच्छा ? अहो गौतम
नारकी से वैमानिक पर्यंत सत्र में पहिला दूसरा भंगा कहना. परंतु मनुष्य का समुच्चय जीव जैरे जानना.* the१४॥ अहो भगवन् ! जीवने मोहनीय कर्म का क्या बंध कीया वगैरह जैसे पापकर्म का कहा वैसे ही 1%योहनीय कर्य का वैमानिक पर्यंत विशेषता रहित जानना ॥ १५ ॥ अहो भगवन् ! जीवने क्या आयुष्य'