Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पढमवितियाभंगा ॥ सुक्कलेस्से जहा सेलेस्से, तहेव चउभंगो ॥ अलेस्सेणं भंते! जीवे ।। पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! बंधी णबंधइ णबंधिस्सइ ॥ २ ॥ कण्हपक्खिएणं भंते ! जीवे पावं कम्मं पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी पढमवितिया भंगा ॥ सुक्कपक्खिएणं भंते ! जीवे पुच्छा ? गोयमा ! चउभंगो भाणियव्वो ॥३॥ सम्मट्ठिीणं चत्तारि भंगा, ॥मिच्छाद्दिट्ठीणं पढमवितिया॥ सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवंचेव ॥४॥णाणी चत्तारि भंगा,अभिणिवोहिय णाणीणं जाव मणपज्जवणाणाणं चत्तारि भंगा॥
केवलणाणीणं,चरिमो भंगो जहाअलेस्सा ॥५॥अण्णाणीणं पढमवितिया, एवं मति अण्णा । भावार्थ भांगा जानना. शुक्ल लेशी का सलेशी जैसे चार भागे कहना. अलेशी की पृच्छा ? ो गौतम ! अलेशीने
पापकर्य का बंधगतकाल में किया परंतु वर्तमान में नहीं करते हैं. व आगामिक काल में नहीं करेंगे।।२॥ कृष्ण पक्षीजीवों क्या पापकर्म का बंध कीया पृच्छा ? अहो गौतम ! कितनेकने बंध कीया यो पहिला दूसरा भांगा कहना. शुक्लपक्षी की पृच्छा! शुक्लपक्षी वाले जीवों में चारों भांगे पावे. ॥ ३ ॥ समदृष्टि में चार मांगे.
मिथ्यादृष्टि व सममिथ्यादृष्टि में पहिला दूसरा दो भांगे कहना ॥ ४ ॥ ज्ञानी में चार भांगे, आभिनियो२७धिक शानी यावत् मनःपर्यव ज्ञानी में चार भांगे, केवल ज्ञानी में एक अन्तिम भांगा अर्थात् बंध किया,
परंतु बंध नहीं करते हैं व. बंध नहीं करेंगे ॥ ५ ॥ सअज्ञानी में मति अज्ञानी श्रुत अज्ञानी व विभंग मानी ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र +8+
4880- छब्बीसवा शतक का पहिला उद्देशा 488+