Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तत्र
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महाकिरिया अप्पवेयणा अप्पणिजरा ? णो इण? समटे ॥ ४ ॥ सिय भंते ! णेरइया महासवा अप्पकिरिया, महावेयणा महाणिज्जरा ? णो इणटे समटे ॥ ५ ॥ सिय भंते ! णेरइया महासवा अप्पकिरिया महावेयणा अप्पणिजरा ? णो इणटे समटे ॥ ६ ॥ सिय भंते ! जेरइया महासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा, महाणिज्जरा ? णो इणट्रे समटे ॥७॥ सिय भंते! णेरइया महासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा,अप्पणिजरा ? णो इण? समढे ॥ ८ ॥ सिय भंते ! णेरइया अप्पासवा, महा किरिया,
महावेयणा, महाणिजरा ? णो. इण? समटे ॥ ९ ॥ सिय भंते! ते णेरइया ! अप्पाभावार्थ
हैं ? अहो गौतम! यह अर्थ योग्य नहीं है ॥४॥ अहो. भगवन्! क्या नारकी महा आश्रव, अल्प क्रिया, महा। वेदना व महानिर्जरा वाले हैं ? अहो गौतम : यह अर्थ योग्य नहीं है. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् !क्या नारकी महा आश्रव, अल्प क्रिया, अल्प वेदना व महा निर्जरा वाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है.
महा आश्रय, अल्प क्रिया, अल्प वेदना, व महा निर्जरावाले क्या हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है ॥ ७॥ अहो भगवन् ! नारकी महा आश्रव, अल्प क्रिया, महा
वेदना, व महा निर्जरावाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है ॥ ८॥ अहो भगवन् ! क्या 17/नारकी अल्प आश्रव, महा क्रिया, महा वेदना व महा. निर्जरावाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ |
8+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
उन्नीसवां शतक का चौथा